जबलपुर के इस मंदिर में आदिशक्ति की 11वीं शताब्दी की मूर्ति, देखने आते है दूर दराज से भक्तगण, देखिए आप भी - India2day news

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शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

जबलपुर के इस मंदिर में आदिशक्ति की 11वीं शताब्दी की मूर्ति, देखने आते है दूर दराज से भक्तगण, देखिए आप भी

हमारा इंडिया न्यूज(हर पल हर खबर)मध्यप्रदेश/जबलपुर। शहर से लगभग 14 किमी. दूर तेवर स्थित त्रिपुर सुंदरी का प्राचीन मंदिर है। भेड़ाघाट रोड स्थित हथियागढ़ में स्थित इस मंदिर में नवरात्र पर्व पर भक्तों का विशेष रूप से मेला भरता है। 11वीं शताब्दी में कल्चुरी राजा कर्ण देव ने इसका निर्माण कराया था। इसकी पुष्टि यहां एक शिलालेख से होती है। यहां नौ दिनों तक शहर के अलावा आसपास के शहरों के लोग भी पूजन करने पहुंचते हैं



आदिशक्ति मंदिर का इतिहास :

इस मंदिर का इतिहास कल्चुरिकाल से जोड़ा जाता है। जो उस समय की पूजित प्रतिमा है। प्रतिमा के तीन रूप राज राजेश्वरी, ललिता और महामाया माने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि राजा कर्ण देव के सपने में आदिशक्ति का रूप त्रिपुरी दिखाई दी थीं। तब राजा कर्ण ने इस प्रतिमा की स्थापना कराई थी। यह प्रतिमा शिला के सहारे अधलेटी अवस्था में पश्चिम दिशा की ओर मुहं करके है। मंदिर में माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। यहां त्रिपुर का अर्थ है तीन शहरों का समूह और सुंदरी का अर्थ होता है मनमोहक महिला। इसलिए इस स्थान को तीन शहरों की अति सुंदर देवियों का वास कहा जाता है। कहा जाता है कि राजा कर्ण हथियागढ़ के राजा थे, वे देवी के सामने खौलते हुए तेल के कड़ाहे में स्वयं को समर्पित कर देते थे और देवी प्रसन्न् होकर राजा को उनके वजन के बराबर सोना आशीर्वाद के रूप में देती थीं।



नवरात्र के नौ दिन होती है विशेष आराधना :

हमारा इंडिया न्यूज की टीम से बातचीत के दौरान बताया की मंदिर में नौ दिनों तक विशेष आराधना की जाती है। मंदिर का संचालन प्रशासन द्वारा किया जाता है। जिसमें पुजारियों की नियुक्ति की जाती है। नौ दिनों तक यहां सुबह से रात तक विविध अनुष्ठान किए जाते हैं। नवरात्र पर्व पर विशेष रूप से अखंड ज्योत कलश की स्थापना की जाती है। सुबह और रात में विश्ोष आरती में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। मनोकामनाओं के लिए भी यहां विशेष रूप से नारियल अर्पण किए जाते हैं।


 नवरात्र पर्व पर विशेष तौर पर व्यवस्था की जाती है। सुबह चार बजे पट खोले जाते है और 6:20 बजे तक श्रद्धालु जल अर्पण करते हैं। इसके बाद महाभिषेक किया जाता है। आरती के बाद सुबह 8 बजे से पट खोल दिए जाते हैं। इसके बाद रात 11 बजे तक भक्त दर्शन करते हैं।

-राम किशोर दुबे, पुजारी


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