मध्यकालीन मंदिर जहां सूर्य की पहली किरण करती है शिव का अभिषेक, देखिए यह खबर - India2day news

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शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

मध्यकालीन मंदिर जहां सूर्य की पहली किरण करती है शिव का अभिषेक, देखिए यह खबर



हमारा इंडिया न्यूज (हर पल हर खबर) मध्यप्रदेश। आगामी 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi  उज्जैन में देवों के देव महादेव के महाकाल स्वरूप वाले महाकाल लोक का लोकार्पण करेंगे। ऐसे में प्राचीन शिव मंदिरों का स्मरण स्वाभाविक है। भोपाल संभाग के प्राय: सभी जिलों में प्राचीन शिवालयों और शिव मंदिरों की प्रसिद्धि किसी से छिपी नहीं है। विदिशा के उदयपुर की ही बात करें तो वहां मध्यकालयुगीन नील कंठेश्वर महादेव की आराधना होती है। यह मंदिर अपने शिल्प के लिए भी दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। इतिहासविद इसे खजुराहों से भी परिस्कृत शिल्प का कहते हैं।




 मध्यकालीन शिल्प कला के उत्कृष्ट उदाहरण नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण दसवीं शताब्दी में राजा भोज के भतीजे उदयादित्य ने विक्रम संवत् 1116 से 1137 के मध्य कराया जाना माना जाता है। बताते हैं कि मंदिर का निर्माण कार्य 21 सालों में पूरा हुआ। उदयादित्य यहां के शासक थे। उनकी राजधानी होने के कारण इसका नाम उदयादिता नगर था जो कि बाद में उदयपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विदिशा जिले की गंजबासौदा  तहसील मुख्यालय से मात्र सोलह किलोमीटर की दूरी पर स्थित उदयपुर का यह विशाल प्राचीन मंदिर पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित होने के कारण वर्षा के दिनों में मन को मोह लेने वाला होता है। विशाल पत्थरों के परकोटे के बीच सुरक्षित इस मंदिर की ऊँचाई इक्यावन फिट है और दीवारों में नीचे से ऊपर तक नक्कासी के मध्य देवी-देवताओं के चित्र भी अंकित हैं। मंदिर की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह प्रदेश के विश्व विख्यात खजुराहो मंदिर की श्रेणी में आता है बल्कि शिल्प कला में उससे भी एक कदम आगे है।


मंदिर का नक्शा हर खंड पर


 पूरा मंदिर पत्थरों पर तरासे गए छोटे-छोटे खंडो को जोड़कर बनाया गया है। गुबंद के नीचे लगे प्रत्येक खंड पर मंदिर का पूरा नक्शा अंकित है। इससे सहज ही अंदाजा लग जाता है कि मंदिर जमीन से कितना ऊपर और कितना नीचे है।


 मंदिर में विशाल शिवलिंग


 मंदिर में करीब आठ फिट ऊंचा विशाल शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग पीतल के बड़े कवच से ढंका रहता है। कवच को  वर्ष में एक दिवस महाशिवरात्रि पर अभिषेक के लिए हटाया जाता है। इस कवच का निर्माण ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने करवाया था।


कहाँ जाता है अभिषेक का जल ?

           भगवान नीलकेठेश्वर पर महाशिवरात्रि पर कई घड़े दूध और जल श्रृद्धालु चढाते हैं। लेकिन यह पानी कहाँ जाता है ? आज तक किसी को पता नहीं चला। पानी निकासी का पूरा सिस्टम वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया है जिससे पता चलता है कि मध्यकाल में भारतीय निर्माण कला कितनी वैज्ञानिकता लिए हुए थी। मंदिर का पानी गुप्त शिल्प केनाल के सहारे सीधे जमीन में पहुँचता है।


हजारिया महादेव


 उदयपुर में नीलकेठश्वर मंदिर के अतिरिक्त हजारिया महादेव मंदिर भी है जो दक्षिण दिशा में  पहाडी पर बनी किले की दीवार के समीप स्थित है। मंदिर में स्थापित शिवलिंग में एक हजार छोटे-छोटे शिवलिंग की आकृतिंया है। यह भगवान भोलेनाथ के सहस्त्र नाम का द्योतक है इस शिवलिंग की मान्यता है कि उसका पूजन करने से शिव के सहस्त्र नामों के पूजन का फल मिलता है। भगवान भोलेनाथ के सहस्त्र नामों का वर्णन अच्छे-अच्छे विद्वान भी नहीं कर पाते हैं।


ध्वाजाधारी की धारणा


 प्राचीन किवंदती है कि मंदिर का निर्माण एक रात में करने का आदेश स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने दिया था लेकिन सूर्योदय होने के कारण शीर्ष पर बैठा शिल्पी पत्थर का हो गया। किंतु यह धारण सत्य प्रतीत नहीं होती। दरअसल यह प्रतिमा ध्वजाधारी की है यदि उसके हाथों के छेद में पतले बांस के बीच लगा ध्वज लगा दिया जाए तो ऐंसा लगेगा कि कोई ध्वज लेकर बैठा है। यहां ध्वजाधारी की धारणा ही उपयुक्त प्रतीत होती है। 


CM Madhya Pradesh 

Jansampark Madhya Pradesh 

Department of Culture, Madhya Pradesh

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